Ajay

Add To collaction

जुस्तजू भाग --- 25



जिंदगी जहन्नुम बन जाए, जनाब।
तो जिद कीजिए जीने की।।
फिर मौत का तसव्वुर भी।
मेहबूब के साथ सा होगा।।



मामाजी ने अनुपम की मम्मी को फ़ोन कर दिया था। वो तुरंत अपने देवर को बताकर चुप चाप वहां चल दी पर रुखसाना फ़ोन आते समय उनके साथ ही थी तो वह जिद कर उनके साथ आ गई। रास्ते में ही डॉक्टर देशपांडे को फ़ोन कर दिया उन्होंने। कार रुखसाना चला रही थी। वे लोग आरूषि के घर पहुंचे ही थे कि आरूषि को पैनिक अटैक आने शुरू हो गए। मम्मी ने उसे तुरंत अपने अंक में भर लिया। मामाजी ने उनके कहे अनुसार कार में सब सामान शिफ्ट करवा दिया था। रुखसाना ने बच्चे को गोद में ले लिया। मम्मी ने अनुपम को गाड़ी उनके पीहर से मिले कॉटेज में ले चलने का आदेश दे दिया। वे आरूषि को अपने साथ गले से लगाए पीछे बैठ गई थी। मम्मी का कॉटेज काफी बड़ा था जो कि छोटा महल ही था। वे आरूषि को अपने साथ सुलाने ले गई वहीं रुखसाना भी उनके बच्चे के साथ थी। डॉक्टर देशपांडे ने अनुपम को निर्देश समझा दिए थे। आज आरूषि को सिर्फ मम्मी ही संभाल पाई थी। बच्चा पहले भी रुखसाना को पहचानता था तो उसके कारण भी कोई परेशानी नहीं थी पर मां बेटे दोनों की नींद उड़ी हुई थी इधर आरूषि का परिवार बैचेन था। पर सुबह आरूषि के स्वास्थ्य के लिए शुभ संकेत ले आई थी। आरूषि दवाइयों के असर से 7 बजे उठी। अपने पास उन्हें जागते देखकर उनसे फिर लिपट गई,

"मम्मी......"

"मैं जानती थी मेरी आरू मजबूत है।"

"मम्मी मुझे लखनऊ में उस रात सब याद आ गया था। पर उस रात अब्बा के परिवार ने बचा लिया।"

"जानती हूं। अभी भी रुखसाना साथ आई है।"

"मम्मी, छोटू...."

"वो अपनी मासी के पास है। पर अब उसका नामकरण भी करना है और शिव -सौम्या की शादी भी तुम्हें ही संभालनी होगी। अब उठो और अपनी जिम्मेदारी संभाल लो।"

सबने आरूषि के ठीक होने से चैन की सांस ली थी। कुछ ही देर में मम्मी की कॉटेज सारे परिवार से भर गई। आरूषि को सबसे ज्यादा खुशी तब हुई जब उसकी बात अख़तर से हुई। अब उसके मन से अपने प्रति पल रहा वहम जा चुका था।


*********

अगले दिन छोटू का नामकरण करवाया गया। नाम रखने का हक़ सारे परिवार ने रुखसाना को सौंपा। उसे ज्यादा जानकारी न थी पर उसके मुंह से शब्द निकला "अर्पण" जिसे पंडित जी ने बिल्कुल राशि के अनुकूल बताया। रुखसाना की आंखे भी भर आई। उसने आरूषि को फिर गले लगा लिया।

"तुम हमेशा मेरी बहन ही रहोगी। शायद अब्बू के दिल का अरमान ही हो।"

"तुम्हारे लिए यह सिर्फ राधा ही रहेगी "मम्मी ने रुखसाना को भी अपने गले लगा लिया।

सब उस रात उदयपुर ही रुके थे कि अनुपम के ननिहाल से मम्मी जी को फोन आ गया। शाम को रोड़वेज बस पलट गई थी। उसमें कुछ आदिवासी घायल हुए थे। जिनमें से चार के सर में गम्भीर चोटें आईं थीं। आदिवासी बेहद नाराज़ थे और ढोल पीट दिया गया था। तो सारा प्रशासन हिल उठा था। किस्मत से ये गांव मम्मी जी के पिता से जुड़ा था तो उन्हें ही संभालना था। उदयपुर संभागीय आयुक्त और कलेक्टर तुरंत ही उनके पास आ पहुंचे।

"आप झाला साहब की बेटी हैं और ये आदिवासी केवल आपकी बात ही सुनेंगे।"कलेक्टर ने उनसे निवेदन किया।

"आप जल्दी से सब स्पष्ट करें"

"रोडवेज पलट गई घाटी में। काफ़ी लोगों को चोटें आईं है। पर चार बेहद गम्भीर है।"

"अभी कहां भर्ती कराया है उन्हें।"

"मेडिकल कॉलेज में पर उनका बचना संभव नहीं। उनका ऑपरेशन बेहद जटिल है और यहां किसी सर्जन के पास ऐसे ऑपरेशन का अनुभव नहीं है।"

"आप वहां के सुपरिटेंडेंट को पूछिए कि वे डॉक्टर आरूषि को ये ऑपरेशंस करने की अनुमति देंगे ?"

"क्या वे यहां हैं ?" संभागीय आयुक्त ने चौंककर कहा।

"जी"

"मैडम आपने हमारी सबसे बड़ी मुश्किल का समाधान दिया है। उनके पति....."

"बेटे हैं हमारे"

"जी !!!!"

उन्होंने आरूषि को बुलवा लिया। वह तुरंत तैयार हो गई। आनन फानन में मेडिकल कॉलेज में सभी तैयारियां कर ली गई। आरूषि वहां चली गई और मम्मी अनुपम को साथ लेकर आदिवासियों के गांव रवाना हो गई। प्रशासन को गांव की सीमा पर ही रुकने को कहकर वे अनुपम के साथ उनके मुखिया से मिलने चली गई। उधर फिर आरूषि की कठिन परीक्षा थी। पर आरूषि के भाग्य ने चमत्कार दिखाया और वह सबको बचाने में सफ़ल रही। गांव में समाचार पहुंचते ही मुखिया ने "मौताणे" की चेतावनी वापस लेने का संदेश सभी जगह भेजने का निर्देश अपने समुदाय को दे दिया। प्रशासन की जान में जान लौट आई थी। सभी मम्मी जी के कृतज्ञ थे और अनुपम और डॉक्टर आरूषि खबरों में थे। प्रदेश के गृह मंत्री ने सीएम साहब के निर्देश पर ख़ुद बात की और उनका आभार जताया। उधर मुखिया ने पुराने संबंधों के कारण अनुपम और आरूषि को एक दिन के लिए उनके गांव में रुकने के लिए मम्मी को कहा।

अनुपम और आरूषि के लिए वह बेहद अलग अनुभव था। उन गरीब पर निश्छल आदिवासियों का दिया सम्मान उनके लिए सबसे बड़ा सम्मान लगा उन्हें। अब आरूषि को भी समझ आ गया था कि ईश्वर ने उसका चुनाव किया था


********


एक माह बाद सौम्या और शिवेंद्र की शादी भी आ गई। आरूषि का सारा परिवार इकट्ठा था। अबकी बार आरुषि और अनुपम को उदयपुर अपने दादाजी के बंगले हिरण्य मगरी पर रुककर शादी की व्यवस्था पूरी करनी थी। सौम्या के माता पिता अनुपम की मां के कॉटेज में ठहराए गए थे। वहीं सैयद साहब के परिवार की व्यवस्था अनुपम के घर में की गई थी पर व्यवस्थाओं में परिवर्तन हुआ क्योंकि सैयद साहब ने उदयपुर में रुकने की ईच्छा जाहिर की। अलग अलग रस्में अपनी पूरी शान से निभाने का इरादा था तो। रुखसाना के परिवार और अख़्तर को अनुपम की कोठी में उनके साथ ही ठहराया गया था। कोठी सहित सारे स्थान गुलजार थे। अनुपम ने निशांत को भी बुलाया था। निशांत ने भी सैयद साहब के साथ रुकने की ईच्छा जताई थी और वे दोनो एन शादी को ही आने वाले थे।

पहले दिन गणेश जी का न्यौता भेजा गया जिसे अनुपम -आरुषि शिवेंद्र की ओर से और उनके चाचा सौम्या के माता पिता के साथ गए थे। दोनों मेवाड़ी वेशभूषा में बेहद सुंदर लग रहे थे। बड़ी दादीजी ने उनकी नजरें उतारकर न्योछावर भेज दी।

"आरू, छोरी थे म्हारो मान घणों बढ़ायौ है।"दादीजी के शब्दों ने आरुषि को और विनम्र बना दिया। उसने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
 आज तो जैसे सभी को दोनों की जोड़ी बेहद प्यारी लग रही थी। गणेश जी के न्यौते के बाद सारी रस्में शुरू हो चुकी थी। पर आज आरुषि ननद की भूमिका में थी तो वही पुरानी आरुषि लौट आई थी, अल्हड़, चंचल और शैतान !! उम्र और बच्चे भी उसका पुराना समय रोकने में असमर्थ थे। शोर मचाती और बेहद जिम्मेदार आरुषि को देखकर वे सभी बेहद प्रसन्न थे जिन्होंने आरुषि के बुरे समय में उसके दुःख को अनुभव किया था। सबसे ज्यादा अनुपम को खुशी थी वह मौका मिलने पर चौका मारने से भी नहीं चूक रहा था। शाम को गीतों के बाद मेहंदी रचाने का समय था। अनुपम मन में सपने सजाए बैठा था कि आज आरुषि को उसके हाथों से ही खाना होगा।

   पर अफ़सोस !! आरुषि को शिवेंद्र और अख़्तर ने खाना खिला दिया। अनुपम रात को आस लगाए बैठा था कि रुखसाना उसके साथ रुक रही थी। अनुपम निराश हो गया। तभी आरुषि किसी काम से उसे अपनी छोटी भाभी के कमरे की तरफ़ आती दिखी। यह कमरा ज़रा एकांत में था तो उसने इंतजार किया और जैसे ही वह इस ओर आई उसने जल्दी से हाथ पकड़कर खींच लिया। एक बार आरुषि चौंकी पर अनुपम का चेहरा देखते ही नाराज़ हो गई।

"क्या हुआ है आपको ? घर मेहमानों से भरा है किसी ने देख लिया होता....."

"अब परी उड़ती फिर रही है तो पकड़ना बनता है।"

आरुषि रक्तिम हो उठी पर झूठी नाराजगी से बोली,"यह परी अब दो बच्चों की मां और किसी की भाभी किसी की ननद, किसी की बहू और मरीजों की डॉक्टर भी है।"

"हां तो मैं भी बीमार हूं न।"

"तो कड़वी दवाई से ठीक होंगे या इंजेक्शन देना पड़ेगा !!"

"बस कुछ देर का साथ और यहां दवा मिल जाए तो..."उसने अपने होठों की ओर इशारा किया।

"ठहरिए, मम्मीजी को बताती हूं।"

"अब मां थोड़ी न बीमार है, दवा तो बेटे को चाहिए।"

"अरे, भाभी...."

अनुपम चौंककर अलग हो गया। आरूषि उसे अंगूठा दिखाकर चिढ़ाती हुई भाग निकली।

"उफ्फ, यह परी तो... उसके शब्द अभी पूरे नहीं हो पाए थे कि आरूषि पीछे से आकर उसके गाल पर किस करके वापस भाग गई।

दूसरे दिन संगीत का कार्यक्रम था। दोनों ओर बराबर तैयारी चल रही थी। अनुपम को पता था कि आरूषि को डांस नहीं आता और मुकाबले में शिवेंद्र की ओर से केवल आरूषि और रुखसाना ही थी। राजपूती रिवाज़ के अनुसार पुरुषों का प्रवेश निषिद्ध था। देर रात चुपके से अनुपम आरूषि के कमरे में आ गया आरूषि अकेली थी पर अर्पण साथ सो रहा था। उसने आरूषि को उसके पास आने का इशारा किया पर आरूषि ने उसे आंखों से धमका दिया। अनुपम न माना उसने हाथों से डांस करने का इशारा किया और आंखों से न जाने की बात कह दी। आखिर आरूषि मन मारकर चुपचाप उसके पास आ गई। अनुपम ने हल्के से बाहों में लिया और आसान स्टेप लेने लगा। आरूषि भी उसकी नजरों में देखती कदम से कदम मिलाने लगी। कुछ देर में ही दोनो बेहद अच्छा डांस कर रहे थे। उधर रुखसाना किसी काम से वहां आई पर उनका डांस देखने को छुप गई। उसे भी दोनों का डांस और जोड़ी बेहद आकर्षक लग रही थी। उसने मोबाईल पर रिकार्ड करना शुरु कर दिया। बिना संगीत का वह डांस मनमोहक था। रुखसाना मेस्मराइज्ड थी। तीनों खोए थे कि अचानक रुखसाना के हाथ से दरवाजे को धक्का लगा। आवाज से तीनों चौंके। आरूषि शर्माकर बिस्तर में जा छुपी और अनुपम नीची नजरें किए सर खुजाता धीरे से रुखसाना के पास से खिसकने लगा कि रुखसाना ने रोक लिया।

"भाई, अब तक कहां छुपे बैठे थे ??"

"दी प्लीज़, किसी को बताना मत"

"फीस लगेगी"

"..."

"हमें जीतना है कल, और आपको आरूषि को परफेक्ट बनाना होगा।"

"पर दी, बाकी लोग....."

"उनकी चिंता आप न करें। हम कोठी की आखिरी मंजिल पर है और आरूषि को सबसे अलग कमरा मिला है।"

अनुपम खुशी खुशी तैयार हो गया। रुखसाना की निगरानी में आरूषि ने अपने डांस नंबर बहुत अच्छे से सीख लिए। फिर रात को जब वह नाची तो सबकी तारीफ़ सुनकर मम्मीजी भी आ गई। अपनी बेटी कम बहू को ऐसे नाचते देखकर उन्होंने उसकी नज़र उतारी। बेशक आरूषि की पार्टी हारी थी पर आरूषि का डांस सब ओर चर्चा में था।

अनुपम नीचे अपने भाइयों के पास रह रहा था। पर अबकी बार पहल आरूषि की तरफ़ से हुई। अनुपम छत पर अपनी यादों में खोया था कि आरूषि हल्के कदमों से उसके पास आ खडी हुई।

"थैंक यू"

"किसलिए ? "

"आपकी मदद के लिए।"

"पर डांस तो आपने किया न !!"

"आपकी वजह से। वर्ना मुझसे तो....।"

"खबरदार मेरी परी किसी से कम नहीं है।"

"पर परी को अकेले रहना पड़ रहा है न ! "

"आपके पास तो सभी है !"

"परी को आपके बगैर...."

"फिर तो सोचना पड़ेगा।"

"कुछ उल्टा सीधा नहीं। हमें केवल आपकी बाहों का सहारा चाहिए।"

"यह तो सरासर नाइंसाफी है।"

"जो है सो है। हमारी मर्जी...." कहकर आरूषि उसके गले लग गई। अनुपम को अपने कंधे पर गीलापन महसूस हुआ। वह समझ गया। उसने आरूषि का चेहरा उठाकर उसके आंसू पोंछे और बातों का रुख घुमा दिया।

"अर्पण सो गया !!"

"अम्मी के पास है आज।"

"ओह, गुवाहाटी भी जाना पड़ेगा न !! पर अबकी बार मेरे साथ ही...।"

"हम्म, अब्बा कुछ कहते नहीं पर याद बहुत करते हैं।"

"मम्मी से मैं बात कर लूंगा।"

"नहीं, मम्मीजी अब हमेशा मेरे साथ ही रहेंगी।"

"और मैं..."

"आप अपना देखिए"

"फिर तो मेरा चलना पक्का।"

दोनों सारी रात सितारों की छांव में बैठकर दिल की बातें करते रहे। अलसुबह रुखसाना उसकी बड़ी भाभी के साथ आई पर उन दोनों को बच्चों की तरह सोते देखकर दोनों ठहर गई।

"ईश्वर ने क्या सुंदर जोड़ी बनाई है !!"

"हां, सच है।"

"और आप लोगों ने इसे नाम भी तो राधा दिया। तभी तो ऐसी मन मोह लेती है।"

"और इसने हमारे परिवार को नया जीवन दे दिया बदले में। अख़्तर को ज़िम्मेदार बनाया, उसकी जान भी बचाई और अब्बा का कारोबार !!! न केवल काबिल डॉक्टर है बल्कि कंपलीट पैकेज.."

"क्यों न इन दोनों की एक फ़ोटो ले लें ?" रुखसाना को इमोशनल होते देखकर उसकी भाभी ने बातों का रुख मोड़ दिया। फ़ोटो लेने के बाद रुखसाना ने आरूषि को और बाद में भाभी ने अनुपम को जगाकर नीचे भेज दिया। अगर कोई और बड़ा आ जाता तो समस्या हो सकती थी।

********

तय दिवस पर सौम्या और शिवेंद्र एक सूत्र में बंध गए। फिर कुछ दिनों बाद सब अपने अपने रूटीन में व्यस्त हो गए। आरूषि मुंबई अपने हॉस्पिटल में और अनुपम को दिल्ली बुला लिया गया था तो वह वहां।

साल भर बाद अनुपम जाकर सौम्या को मुंबई ले आया था आखिर वह मां बनने वाली थी। आरूषि की जोड़ी फिर जम गई थी।

आखिर वह दिन आ ही गया था जब सौम्या मां बन गई। किस्मत का फेर था कि शिवेंद्र को छुट्टी नहीं मिल पाई थी और अनुपम को मुंबई किसी टास्क के लिए भेजा गया था। सौम्या अनुपम को भाई बोलने लगी थी तो अब आरूषि के लिए भाभी ज़ुबान पर चढ़ गया था। सबसे पहले उसके बच्चे को अनुपम के हाथों में ही दिया गया था। अनुपम उसे रूई के फाहे से सफेद गोले की तरह संभाले था। पहली बार उसने किसी नवजात को गोदी लिया था। उसके आंखों में आंसू थे और हाथ में कहीं बच्चे को कुछ न हो पाए, ऐसे संभाले था। सौम्या के मुंह से निकल गया।

"भाभी देखो भाई की खुशी..."

"हां .." आरूषि भी उसे देखकर अचंभित सी थी।

"आखिर दोनों में से किसी को गोद नहीं ले पाए न...!!


आरूषि के बात सीधे दिल पर लगी, बात कड़वी थी पर सौ प्रतिशत सच थी।


बात दिल की

     तो आखिर अंत की ओर कहानी पहुंच ही गई। पर अनुपम को पिता होने और आरूषि को मातृत्व का अनुभव न हो पाने ने एक एक्स्ट्रा भाग लिखने को प्रेरित किया। वहीं दोनों को आपस में साथ रहने का अनुभव कम ही मिल पाया तो इस अंतिम भाग में इनके मध्य की केमिस्ट्री दिखाए बिना कहानी का अंत अधूरा सा लगा। तो आपकी क्या राय है। कृपया अपना मत जरूर लिखें।🙏🏻🙏🏻🙏🏻
जय जय




   11
4 Comments

Sandhya Prakash

25-Jan-2022 08:31 PM

कहानी शुरू से लेकर अंत तक पढ़ी बहुत अच्छी कहानी थी, मिलना बिछड़ना किस्मत के खेल सब कुछ था कहानी में कहीं कोई कमी नहीं आप एक बेहतरीन लेखक है आपकी शैली कमाल की है। आगे भी ऐसी अच्छी अच्छी कहानियां लिखते रहें।धन्यवाद...🙏

Reply

Ajay

26-Jan-2022 12:35 AM

जल्दी ही अपनी मूल शैली में (एक भाग में ही पूरी कहानी) नई रचना लाऊंगा। पर कब ? यह निश्चित नहीं कह सकता हूं।🙏🏻🙏🏻

Reply

Sandhya Prakash

25-Jan-2022 08:29 PM

कहानी का अंत अधूरा नही है, बस एक पार्ट और आ सकता था, जिसमे अनुपम और आरुषि की बॉन्डिंग का जिक्र रहता, उनके लम्हात का जिक्र रहता। सभी साथ होते शायद और मजा आ जाता।

Reply

Ajay

25-Jan-2022 09:03 PM

कल का इन्तजार कीजिए। मुझे भी अधूरा लगा तो बोनस भाग ला रहा हूं।🙏🏻🙏🏻

Reply